एक बेहतर संतुलित और अधिक लचीली विश्व अर्थव्यवस्था की ओर
April 17, 2025
सुप्रभात! आप सभी का हार्दिक स्वागत है! और मारिया, आपके इस विनम्र परिचय के लिए एक बार फिर धन्यवाद।
छह महीने पहले, इसी स्थान पर मैंने कम विकास और उच्च कर्ज के बारे में बात की थी। लेकिन मैंने लचीलेपन की भी बात की थी—कि कैसे देश मजबूत बुनियादों और चतुर नीतियों के चलते बड़े झटकों से उबर रहे हैं।
वैश्विक व्यापार प्रणाली के फिर से रीबूट होने के कारण इस लचीलेपन की फिर से परीक्षा ली जा रही है।
वित्तीय बाज़ार की अस्थिरता बढ़ गई है और व्यापार नीति को लेकर अनिश्चितता अपने चरम पर है—बस इस चित्र (चित्र 1) पर नज़र डालें।
जब-जब व्यापार में तनाव बढ़ा, वैश्विक शेयर कीमतों में गिरावट आई, भले ही कई मूल्यांकन अब भी ऊँचे हैं — यहाँ बाज़ार की स्थिति की एक झलक है (चित्र 2)।
यह इस बात की याद दिलाता है कि हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ अचानक और व्यापक बदलाव आते रहते हैं।
और यह बुद्धिमानी से प्रतिक्रिया देने का आह्वान है। एक बेहतर संतुलित, अधिक लचीली विश्व अर्थव्यवस्था हमारी पहुंच में है। हमें इसे सुरक्षित करने के लिए कार्रवाई करनी होगी।
तो चलिए मैं तीन मूल प्रश्नों के माध्यम से कहानी को स्पष्ट करती हूँ। परिप्रेक्ष्य क्या है? परिणाम क्या हैं? और सबसे महत्वपूर्ण, देश क्या कर सकते हैं?
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भाग एक: परिप्रेक्ष्य क्या है?
व्यापार तनाव उस बर्तन की तरह है जो काफी समय से उबल रहा था और अब छलकने लगा है।
काफी हद तक, हम जो देख रहे हैं वह विश्वास के गिरावट का परिणाम है—अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली पर विश्वास, और देशों के बीच आपसी विश्वास।
वैश्विक आर्थिक एकीकरण ने बहुत बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है और दुनिया को समग्र रूप से बेहतर बनाया है। लेकिन सभी को इसका लाभ नहीं मिला। नौकरियों के विदेशों में चले जाने से कई समुदाय खाली हो गए। कम लागत वाले श्रम की बढ़ती उपलब्धता के कारण मजदूरी में गिरावट आई। जब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुईं तो कीमतें बढ़ गईं। कई लोग अपने जीवन में महसूस किए गए अन्याय के लिए अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली को दोषी मानते हैं।
व्यापार विकृतियों — टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं — ने इस बहुपक्षीय प्रणाली के बारे में नकारात्मक धारणाओं को बढ़ावा दिया है, जो निष्पक्षता प्रदान करने में विफल रही हैं ।
हम इन विकृतियों को निम्नलिखित दो ग्राफ़ों में देख सकते हैं। पहला ग्राफ़ हमें बताता है कि 20 वर्षों के लिए दुनिया ने कम और स्थिर अमेरिकी प्रभावी टैरिफ दर की ओर एक अच्छा अभिसरण देखा, लेकिन पिछले दशक में यह प्रगति रुक गई (चित्र 3)।
दूसरा ग्राफ़ प्रमुख क्षेत्र द्वारा लागू किए गए नए सब्सिडी उपायों की संख्या को दिखाता है, आकार को नहीं (चित्र 4)। यह अधूरी तस्वीर है, लेकिन यह व्यापक दिशा दिखाती है: गैर-टैरिफ बाधाएँ बढ़ रही हैं।
कुछ स्थानों पर यह अन्याय की भावना उस सोच को बढ़ावा देती है: कि हम नियमों का पालन करते हैं, जबकि अन्य बिना किसी दंड के प्रणाली का दुरुपयोग करते हैं। व्यापार में असंतुलन से व्यापार में तनाव बढ़ता है।
फिर आता है राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा। बहुध्रुवीय विश्व में, चीज़ें कहाँ बनाई जाती हैं, यह बात उनकी कीमत कितनी है- से अधिक मायने रखती है। राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क यह कहता है कि कम्प्यूटर चिप्स से लेकर स्टील तक, सामरिक वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला को देश में ही बनाया जाना चाहिए, और इसके लिए अधिक कीमत चुकाना भी स्वीकार्य है। आत्मनिर्भरता की वापसी हो रही है।
ये सभी चिंताएं, एक साथ मिलकर, अब उबाल पर हैं, और हमें एक ऐसी दुनिया में पहुंचा दिया है जहां उद्योग को सेवा क्षेत्र की तुलना में अधिक महत्व दिया जा रहा है; जहाँ राष्ट्रीय हित वैश्विक सरोकारों पर भारी हैं; और जहाँ मुखर कार्रवाइयाँ मुखर प्रतिक्रियाओं को जन्म देती हैं।
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भाग दो: परिणाम क्या हैं?
संक्षिप्त जवाब: काफ़ी महत्वपूर्ण।
आइये प्रशुल्कों (टैरिफों) से शुरुआत करते हैं। हाल में कई बार हुई प्रशुल्क (टैरिफ) वृद्धि, स्थगन, बढ़ोतरी और छूटों को मिलाकर देखें तो यह स्पष्ट है कि अमेरिका का प्रभावी प्रशुल्क (टैरिफ) दर उन स्तरों तक पहुँच गया है, जो कई पीढ़ियाँ पहले देखा गया था (चित्र 5)। अन्य देशों ने जवाब दिया है।
और फिर इसके प्रभाव भी हैं। जब दो दिग्गज आमने-सामने होते हैं, तो छोटे देश इन टकरावों की चपेट में आ जाते हैं। चीन, यूरोपीय संघ और अमेरिका — भले ही इनके GDP के मुकाबले आयात कम हों — दुनिया के तीन सबसे बड़े आयातक हैं (चित्र 6)। मुख्य निष्कर्ष? आकार मायने रखता है — इनके द्वारा की गई कार्रवाई से बाकी दुनिया प्रभावित होती है।
छोटी उन्नत अर्थव्यवस्थाएं और अधिकांश उभरते बाजार अपने विकास के लिए व्यापार पर अधिक निर्भर हैं, और इस प्रकार वे अधिक जोखिम में होते हैं, उस समय भी जब वित्तीय स्थितियां कड़ी होती हैं। कम आय वाले देशों को सहायता प्रवाह में गिरावट की अतिरिक्त चुनौती का सामना करना पड़ता है, जब दानदाता देश घरेलू चिंताओं से निपटने में व्यस्त होते हैं।
इन तनावों का प्रभाव क्या होगा? मैं तीन टिप्पणियां प्रस्तुत करना चाहती हूं:
- पहली, अनिश्चितता महंगी होती है। आधुनिक आपूर्ति श्रृंखलाओं की जटिलता का अर्थ है कि आयातित सामग्री बहुत से अलग-अलग तरह के घरेलू उत्पादों में इस्तेमाल होती है। किसी वस्तु की कीमत दर्जनों देशों में टैरिफ की वजह से प्रभावित हो सकती है। द्विपक्षीय टैरिफ दरों की दुनिया में, जिनमें से प्रत्येक ऊपर या नीचे जा रही हो सकती है, योजना बनाना कठिन हो जाता है। परिणाम? समुद्र में जहाजों को यह नहीं पता कि किस बंदरगाह पर जाना है; निवेश संबंधी निर्णय स्थगित कर दिए गए हैं; वित्तीय बाजार अस्थिर हैं; एहतियाती बचत बढ़ गई है। अनिश्चितता जितने अधिक समय तक बनी रहती है, लागत उतनी ही बढ़ती जाती है।
- दूसरा, बढ़ती व्यापार बाधाओं का शुरू में ही विकास पर असर होता है। सभी करों की तरह टैरिफ भी राजस्व बढ़ाते हैं लेकिन इससे गतिविधियों में कमी आती है और ये स्थानांतरित हो जाती हैं — और जैसा कि पिछले प्रकरणों से पता चलता है उच्च टैरिफ दरों का भुगतान केवल व्यापारिक साझेदारों द्वारा ही नहीं किया जाता है। आयातक कुछ हिस्सा कम मुनाफे के माध्यम से चुकाते हैं, और उपभोक्ता कुछ हिस्सा उच्च कीमतों के माध्यम से चुकाते हैं। आयातित सामग्री की लागत बढ़ने से टैरिफ का असर तुरंत होता है। बेशक, अगर घरेलू बाजार बड़ा हो, तो यह विदेशी कंपनियों को यहाँ निवेश करने के लिए प्रेरित कर सकता है, जिससे नई गतिविधियाँ और नौकरियाँ आ सकती हैं। हालाँकि, इसमें समय लगता है।
- तीसरा अवलोकन यह है कि संरक्षणवाद लंबी अवधि में उत्पादकता को नष्ट कर देता है, विशेष रूप से छोटी अर्थव्यवस्थाओं में। उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से बचाने से संसाधन के कुशल आवंटन के लिए प्रोत्साहन कम हो जाता है। व्यापार से हुई पिछली उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा की उपलब्धियाँ धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं। उद्यमशीलता की जगह उद्योग छूट और संरक्षण के लिए सरकार से विशेष अनुरोध करने लगते हैं। इससे नवाचार को चोट पहुँचती है। लेकिन फिर भी, यदि घरेलू बाजार बड़े हैं और घरेलू प्रतिस्पर्धा जीवंत है, तो नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।
अंततः, व्यापार पानी की तरह होता है: जब देश टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं के रूप में अवरोध खड़े करते हैं, तो उसका प्रवाह दूसरी ओर मुड़ जाता है। कुछ देशों के कुछ क्षेत्र सस्ते आयात से भर जाते हैं; जबकि अन्य में कमी देखी जा सकती है। व्यापार चलता रहता है, लेकिन रुकावटों से लागत बढ़ती है।
हम इन लागतों का आकलन अपने नए “विश्व आर्थिक परिदृश्य”(World Economic Outlook) में करेंगे, जो अगले सप्ताह के प्रारंभ में जारी किया जाएगा। इसमें, हमारे नए विकास अनुमानों में उल्लेखनीय गिरावट शामिल होगी, लेकिन मंदी नहीं। हम कुछ देशों के लिए मुद्रास्फीति पूर्वानुमान में भी बढ़ोतरी देखेंगे।
हम आगाह करेंगे कि लम्बे समय तक बनी रहने वाली उच्च अनिश्चितता से वित्तीय बाजार में तनाव का खतरा बढ़ जाता है। इस महीने की शुरुआत में, हमने कुछ प्रमुख बांड और मुद्रा बाजारों में असामान्य हलचल देखी। यहां, हम देख सकते हैं कि कैसे, उच्च अनिश्चितता के बावजूद, डॉलर का अवमूल्यन हुआ, और अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिफल वक्र "मुस्कुराया" — यह उस तरह की मुस्कान नहीं है जिसे कोई देखना चाहता है (चित्र 7)। ऐसे हलचलों को चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए। अगर वित्तीय परिस्थितियाँ बिगड़ती हैं, तो हर कोई प्रभावित होता है।
इसके विपरीत, हमारा विश्व आर्थिक परिदृश्य (World Economic Outlook) यह भी दिखाएगा कि मतभेदों को सुलझाने और संतुलन बहाल करने के लिए संकल्पबद्ध नीतिगत कार्रवाई बेहतर परिणाम दे सकती है। यही वह बात है जिस पर मैं अपनी प्रस्तुति के अंतिम भाग में ध्यान केंद्रित करना चाहती हूँ।
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देश क्या कर सकते हैं?
बहुत कुछ, और फिर कुछ और।
सबसे पहले, सभी देशों को अपनी घरेलू व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करना होगा। अधिक अनिश्चितता और लगातार झटकों वाली दुनिया में, आर्थिक और वित्तीय स्थिरता बढ़ाने तथा विकास क्षमता में सुधार लाने के लिए सुधारों में देरी की कोई गुंजाइश नहीं है।
अर्थव्यवस्थाएं कमजोर प्रारंभिक स्थिति से नई चुनौतियों का सामना कर रही हैं, जब सार्वजनिक ऋण का बोझ कुछ वर्ष पहले की तुलना में बहुत अधिक है (चित्र 8)। इस तरह, अधिकांश देशों को नीति के लिए स्थान को फिर से निर्मित करने के लिए दृढ़ राजकोषीय कार्रवाई करनी होगी, तथा राजकोषीय ढांचे का सम्मान करते हुए क्रमिक समायोजन पथ निर्धारित करना होगा। हालांकि, कुछ देशों को झटके का सामना करना पड़ सकता है, जिसके कारण उन्हें नए सिरे से राजकोषीय सहायता की आवश्यकता होगी; यदि यह सहायता प्रदान की जानी ही है, तो यह लक्षित और अस्थायी होनी चाहिए।
मूल्य स्थिरता की रक्षा करने के लिए, मौद्रिक नीति को लचीला और विश्वसनीय बनाए रखना होगा, तथा केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए। केंद्रीय बैंकरों को आंकड़ों पर कड़ी नजर रखनी होगी — कुछ मामलों में उच्च मुद्रास्फीति की उम्मीदों पर भी।
वित्त के क्षेत्र में, मजबूत विनियमन और पर्यवेक्षण आवश्यक है, ताकि बैंकों को सुरक्षित रखा जा सके, तथा गैर-बैंकिंग संस्थाओं से बढ़ते जोखिमों पर निगरानी रखी जानी चाहिए तथा उन्हें नियंत्रित किया जाना चाहिए।
उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं को झटकों को झेलने के सक्षम बनने के लिए विनिमय दर के लचीलेपन को बनाए रखना चाहिए। नीति निर्माता अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के एकीकृत नीति ढांचे पर नजर डाल सकते हैं, ताकि यह पता चल सके कि अस्थायी उपायों की आवश्यकता कब और कैसे हो सकती है।
कड़ी बजटीय सीमाओं का मतलब है कि हर जगह कठिन फैसले लेने होंगे — लेकिन कम आय वाले देशों में इसकी सबसे अधिक ज़रूरत होगी। यहाँ, कमजोर सरकारी राजस्व का मतलब है कि घरेलू संसाधन जुटाने के लिए अधिक प्रयासों की ज़रूरत है, लेकिन साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से सहायता भी ज़रूरी है — ताकि सुधारों की क्षमता बढ़ाई जा सके और आवश्यक वित्तीय सहायता मिल सके।
जिन देशों का सार्वजनिक ऋण अस्थिर है, उन्हें सक्रिय रूप से स्थिरता बहाल करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए, जिसमें कुछ मामलों में ऋण पुनःसंरचना का कठिन निर्णय लेना भी शामिल है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज सम्मेलन (Global Sovereign Debt Roundtable) शीघ्र ही ऋण पुनःसंरचना पर विचार कर रहे देशों के प्राधिकारियों के लिए एक कार्यपुस्तिका प्रकाशित करेगा — ताकि निर्णय लेने में सहायता मिल सके।
विकास क्षमता को बढ़ाकर नीतिगत समझौतों को आसान बनाया जा सकता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूत उत्पादकता वृद्धि देखी गई है, जबकि अन्य देश पीछे रह गए हैं (चित्र 9)। वे इस दूरी को कैसे पाट सकते हैं? बैंकिंग, पूंजी बाजार, प्रतिस्पर्धा नीति, बौद्धिक संपदा अधिकार और ए आई तैयारी में महत्वाकांक्षी सुधारों के माध्यम से, ये सभी उच्च विकास में योगदान दे सकते हैं। कई मामलों में, राज्य को और अधिक प्रयास करने चाहिए ताकि निजी उद्योग और नवाचार के रास्ते की बाधाएँ हटाई जा सकें — दूसरे शब्दों में, खुद को लगाई गई चोटों को खत्म किया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष देशों के व्यापक आर्थिक समायोजन और अग्रिम सुधारों का प्रबंधन करने में मदद करेगा। वर्तमान में, 48 देश हमारे भुगतान संतुलन समर्थन पर निर्भर हैं — जिसमें अर्जेंटीना भी शामिल है, जहां मजबूत बाजार-उन्मुख सुधार अब हमारे सबसे नए और सबसे बड़े कार्यक्रम का समर्थन प्राप्त है।
दूसरी अत्यंत महत्वपूर्ण प्राथमिकता के रूप में, देशों को आंतरिक और बाह्य समष्टि आर्थिक असंतुलनों पर अपना ध्यान फिर से केन्द्रित करना चाहिए।
बचत और निवेश के बीच आंतरिक संतुलन मूलभूत है, और यह एक ओर या दूसरी ओर बहुत अधिक झुक सकता है। यहाँ हमने कुछ बड़े देशों और क्षेत्रों का उदाहरण लेकर दिखाया है कि उनके GDP के प्रतिशत के रूप में बचत और निवेश दरें कैसी हैं (चित्र 10)। असंतुलन के कारणों में राष्ट्रीय बचत की आदतें, नीति-प्रेरित विकृतियां, पूंजी बाजार का खुलापन, विनिमय दर व्यवस्था, जनसांख्यिकी और अन्य कारक शामिल हैं। राजकोषीय, मौद्रिक, विनिमय दर और संरचनात्मक नीतियां प्रमुख उत्प्रेरक का काम करती हैं। जहां भी फिर से संतुलन लाने की आवश्यकता है, वहां काम की शुरुआत देश के भीतर से होती है।
परिभाषा के अनुसार, आंतरिक शेष राशियां बाहरी चालू खाता शेष राशियों को — जिन्हें यहां डॉलर राशियों में दिखाया गया है — और इस प्रकार पूंजी प्रवाह को भी संचालित करती हैं (चित्र 11)। दूसरे शब्दों में, फिर से संतुलन स्थापित करने से आंतरिक, बाहरी और वैश्विक स्तर पर स्थिरता बढ़ सकती है। पूंजी प्रवाह के अचानक रुक जाने के जोखिम को देखते हुए यह बात अपने आप में सत्य है। और यह इसलिए भी सच है, क्योंकि जैसा कि उल्लेख किया गया है, बाहरी अधिशेष और घाटे व्यापार तनाव के लिए उपजाऊ जमीन तैयार कर सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में हम जानते हैं कि फिर से संतुलन बनाना कठिन है। जिन देशों के पास चालू खाते में अधिशेष है, उन्हें आमतौर पर समायोजन की कोई जल्दी नहीं होती — वे पूंजी के आयातक नहीं, बल्कि निर्यातक हैं। तथा, दूसरी ओर, जिन देशों की रिज़र्व मुद्रा है — खासकर अमेरिका — उनके पास चालू खाते के घाटे को सहन करने की विशेष क्षमता है। लेकिन लगातार अधिशेष और घाटे का शुद्ध परिणाम कमजोरियों का जमाव हो सकता है।
सभी देश ऐसी नीतियाँ अपना सकते हैं जो अंदरूनी और बाहरी संतुलन को बेहतर बनाएँ, जिससे सामूहिक लचीलापन और कल्याण को समर्थन मिल सके।
मैं तीन सबसे बड़े देशों पर नजर डालती हूँ:
- चीन में, हम लगातार कम होती निजी खपत को बढ़ावा देने के लिए नीतियों पर सलाह देते रहे हैं। इनमें शामिल हैं: पहला, औद्योगिक नीतियों और उद्योग में व्यापक सरकारी हस्तक्षेप को पीछे हटाना; दूसरा, सामाजिक सुरक्षा तंत्र में सुधार लाने और एहतियाती बचत की आवश्यकता को कम करने के उपाय; और तीसरा, संपत्ति क्षेत्र की कमजोरियों को दूर करने के लिए वित्तीय सहायता। यदि ऐसी कार्रवाइयां पर्याप्त रूप से निर्णायक हों, तो इससे विश्वास और घरेलू मांग बढ़ेगी, क्षतिग्रस्त व्यापार संबंधों को सुधारने में मदद मिलेगी, तथा चीन की विकास गाथा के अगले चरण के लिए मंच तैयार होगा। अन्य बातों के अलावा, इस कहानी में अर्थव्यवस्थाओं के विकास के साथ विनिर्माण से सेवाओं की ओर स्वाभाविक प्रगति को भी गर्मजोशी से अपनाने की आवश्यकता है (चित्र 12)।
- यूरोपीय संघ (EU) में, जर्मनी द्वारा रक्षा और बुनियादी ढांचे पर खर्च को सुगम बनाने के लिए जोरदार राजकोषीय विस्तार से घरेलू मांग में वृद्धि होगी, और यही प्रभाव पूरे EU में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने हेतु एकल बाज़ार को गहराई देने वाली नीतियों से भी होगा। यूरोप को बैंकिंग संघ की आवश्यकता है। यूरोप को पूंजी बाजार संघ की आवश्यकता है। और यूरोप को सेवाओं के आंतरिक व्यापार पर कम प्रतिबंधों की आवश्यकता है। सूची लंबी है। कुल मिलाकर, राजकोषीय सहजता और मजबूत एकीकरण से विकास को बढ़ावा मिलेगा, लचीलापन बढ़ेगा, तथा आंतरिक और बाहरी, दोनों संतुलनों में सुधार होगा।
- अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में, मुख्य समष्टि आर्थिक नीति चुनौती संघीय सरकार के ऋण को कम करने की होगी। इस मार्ग को प्राप्त करने के लिए संघीय बजट घाटे में महत्वपूर्ण कटौती की आवश्यकता होगी — जिसके लिए अन्य बातों के अलावा खर्च में सुधार के तत्वों की भी आवश्यकता होगी। संघीय ऋण में कमी से न केवल लचीलापन मजबूत होगा, बल्कि चालू खाते के घाटे में भी कमी आएगी।
सुधार और फिर से संतुलन सभी के लिए हैं। ASEAN से लेकर खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council) तक, पूरे अफ्रीकी महाद्वीप और अन्य स्थानों पर नीति निर्माता अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने, क्षेत्रीय संबंधों में सुधार लाने तथा अधिशेष और घाटे को कम करने के लिए कार्रवाई कर रहे हैं। हम इन प्रयासों का पुरजोर समर्थन करते हैं।
अंत में, मैं तीसरी प्रमुख — और अब तक की सबसे महत्वपूर्ण — प्राथमिकता पर बात करना चाहूंगी: यह सुनिश्चित करना कि बहुध्रुवीय विश्व में सहयोग संभव हो सके।
व्यापार नीति में, लक्ष्य सबसे बड़े खिलाड़ियों के बीच एक समझौता सुनिश्चित करना होना चाहिए जो खुलेपन को बनाए रखे और अधिक समान अवसर प्रदान करे — ताकि कम टैरिफ दरों की ओर वैश्विक रुझान को फिर से शुरू किया जा सके और साथ ही गैर-टैरिफ बाधाओं और विकृतियों को भी कम किया जा सके।
हमें एक अधिक लचीली विश्व अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है, विभाजन की ओर बढ़ने की नहीं। और, परिवर्तन को सुगम बनाने के लिए, नीतियों को निजी आर्थिक एजेंटों को समायोजित होने और परिणाम देने के लिए समय देना चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण, लचीलेपन के लिए यह आवश्यक है कि उन नीतियों पर ध्यान दिया जाए, जो नुकसान उठाने वालों को राहत प्रदान करें। वितरण संबंधी नीतियां अच्छी अर्थव्यवस्था और अच्छी राजनीति के बीच एक बुनियादी पुल का निर्माण करती हैं।
संक्षेप में, मुझे पूरी उम्मीद है कि अगले सप्ताह हमारी वसंत बैठकें — जिसमें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के 191 सदस्य देश शामिल होंगे — इस महत्वपूर्ण समय में संवाद के लिए एक अत्यंत आवश्यक मंच प्रदान करेंगी। सभी देश, बड़े और छोटे, वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं — और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए — ताकि वे लगातार आने वाले और गंभीर झटकों के इस युग में अपनी भूमिका निभा सकें।
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अंत में, मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करना चाहती हूँ कि हर चुनौती में एक अवसर छिपा होता है। पर्याप्त जोर लगाने पर, जो चीजें संभव नहीं थीं, वे संभव हो जाती हैं, जो पहाड़ कभी नहीं चढ़े जा सकते थे, वे फतह हो जाते हैं; और जो स्वार्थ कभी पीछे नहीं हटते थे, वे भी पीछे हट जाते हैं। शांत मन, स्पष्ट दृष्टि और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ, परिवर्तन का समय नवीनीकरण का समय बन सकता है।
इस अवसर का लाभ उठाने का रहस्य यह है कि अपनी सारी ऊर्जा पुराने को बचाने में नहीं, बल्कि नए को बनाने में — एक संतुलित और अधिक लचीली वैश्विक अर्थव्यवस्था — के निर्माण में लगाई जाए।
धन्यवाद।